Kya sach me bharat hai atmanirbhar?

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Atmanirbhar

Atmanirbharta ? ?आत्मनिर्भर is real india

हाल ही में कुछ दिनों से एक शब्द आपको बहुत सुनाई दे रहा होगा, आत्मनिर्भर यानी अंग्रेजी भाषा में कहें तो self sufficient.

यह शब्द हाल ही में अपने प्रधानमंत्री के संबोधन से सुना है, और इसकी चर्चा देश-विदेश में खूब हो रही है।

सब बड़े खुश हैं पता नहीं क्यों पर खुश है, अभी हम इस महामारी के दौर से गुजर ही रहे हैं कि हमने चाइना को हराने के सपने देखने शुरू कर दिया।

क्या यह सब एक साथ है यह एक छलावा ? कोई नहीं कह सकता, इस विषय पर हमने भी अपना तर्क रखा है बस आपकी राय चाहिए।

क्या हम तैयार है आत्मनिर्भर बनने को ?

आत्मनिर्भरता (atmanirbhar) और स्वदेशी दो अलग अलग चीजे है , हालांकि आत्मनिर्भर भारत हेतु स्वदेशी को अपनाना आवश्यक है लेकिन पर्याप्त नही है और न ही वैश्वीकरण के युग में पूर्ण स्वदेशी सम्भव है लेकिन जहा तक सम्भव हो, वहाँ तक इसे अपनाना फायदेमंद ही है !!

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स्वदेशी अपनाओ यह कहना और स्वदेशी वस्तुओ की लिस्ट बनाकर सोशल मीडिया पर फारवर्ड करने भर से न कोई स्वदेशी को अपना लेगा और ना ही इससे लोगो के और सरकार के कर्तव्यों की इतिश्री हो जाती है।

इसके लिए पूरे जीवन मूल्यों की प्रणाली और उसको निर्मित करने वाले शिक्षा प्रणाली तथा इसे रेगुलेट करने वाले पोलिटिकल सिस्टम में बदलाव करना होगा ! जब तक ऐसा नही होगा स्वदेशी आंदोलन को एक निश्चित मुकाम पर पहचान आसान नही होगा , और देश के तमाम सुंदर नारों की तरह यह भी एक नारा ही साबित होगा !!

जैसे हिंदी , हिन्दू , हिंदुस्तान के नारे का हस्र हुआ है !!

क्या इसी तरीके से बनेंगे हम आत्मनिर्भर(atmanirbhar)??

सरकारी अमला बड़े ताम झाम के साथ हिंदी दिवस पर हिंदी को बढ़ावा देने का नाटक करता है , लेकिन अगर हिंदी के पैरोकारोंसे ही पूछ लो की हमे तब हिंदी क्यों पढ़नी चाहिए , जब अंग्रेजी के बिना न तो बेहतर आजीविका मिल सकती है और न इस देश में सम्मान , तो वो बगले झांकने लगते है ; और उन पैरोकारों के खुद के बच्चे इंग्लिश मीडियम के कैन्वेंटेड स्कूल में बढ़ते है , जैसे हिंदुस्तान की बात करने वाले लोगो के बच्चों के सपने में अमेरिका बसता है !!

NRI का तमगा पाकर भारत के लोग धन्य हो जाते है और कहते है आखिर भारत में रखा ही क्या है !! वैसे NRI होना बुरी बात नही है लेकिन NRI होकर भारत और भारत वासी को गया गुजरा मानना गलत है !! जैसे विदेशी भाषा जानना गलत नही है लेकिन विदेशी भाषा को जानने के बाद देशज भाषा भाषी को अज्ञानी और हेय समझना गलत है !!

हम बेसक बन सकते है महाशक्ति पर यह करना होगा !

जब तक स्वदेशी या देशज को आउट डेटेड और ओल्ड फैशन कहकर उपेक्षित किया जायेगा या उसे द्वितीय दर्जे का नागरिक समझा जायेगा ! विदेशी या इम्पोर्टेड आइटम्स को स्टेट्स सिम्बल माना जाता रहेगा , तब तक कोई स्वदेशी को मजबूरी में ही अपनाएगा , स्वेच्छा से नही !!

क्या हमारा इलीट तबका अपने स्टेट्स सिम्बल से समझौता करने को तैयार है क्योंकि आमजन तो उन्ही की संस्कृति का अनुसरण करता है !!


साथ ही यह भी याद रखना होगा राष्ट्रवादी जूनून अर्थशास्त्र के नियमो के सामने बहुत जल्दी ठंडा पड़ जाता है ! किसी बस्तु की गुणवत्ता , कीमत और सहज उपलब्धता ही उसके क्रय का प्रमुख आधार होती है अन्य चीजो की भूमिका सेकेंडरी होती है !!

पाखण्ड का शमन और देशज को विवेकपूर्ण नमन ही स्वदेशी का आधार है ! इसमें अगर विदेश के प्रगतिशील तत्वों को भी जोड़ दिया जाय तो आत्मनिर्भर भारत बनने से कोई रोक नही सकता है !!

आत्मनिर्भरता (atmanirbhar) और आत्मगौरव हेतु स्वदेशी की एक अपील !!

#localpevocal

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